Wednesday, 27 August 2025

कृष्णा बा




 

कृष्णा बा

 ।। बा ।।

कण कण में क्षण क्षण में 

जीवन के पहले मृत्यु के बाद में

साथ साथ में आसपास में

अत्र तत्र सर्वत्र में 

हर पल में हर स्वास में 

हर उजास में हर रोशनी में 

हर अंधेरे में, हर उस अंधेरी खाई में

भावना में, हर भावनाओं की गहराई में 

चरित्र में चित में चित्रार्थ में 

अकेले में भीड़ में तन्हाई में 

समूह में झुंड में 

शांति में, कोलाहल में, 

और उसके के बाद के हल में 

ऐसे तैसे हर जगह हर उस कोने में 

जहां ना कोई पूछे ना पहुंचे 

आश में, विश्वास में 

इस पार उस पार सबसे पर में 

साथ में परछाई में 

विचार में आचार में आचरण में 

सिख में सलाह में सुलह में 

बातों में रातों में रात के खुली हुई नींद में

असाहजिकता में 

पीड़ा में दुख में सुख में  

गहराई और गहरी बात में

खुलेपन में, विशालता में

खिलखिलाट में, विनोद में 

मस्ती वाली हस्ती में 

नटखट खेल में हास्य में 

बोली मे वाणी में और थमी हुई वाणी में

रुकने में छोड़ने ने में जोड़ने में 

संजोड़ के रखने में

हर कोशिश में हर आश में

निराशा को दूर दूर से न छूने में 

अड़ग सोच में खड्ग जैसे शब्द में

नेतृत्व की उभरती झलक में 

आज़ाद सोच विचार में 

दरिया दिली में मदद के हाथ में 

भावनाओं के खुले मैदान में 

पेड़ सी ठंडी छांव में

अपनेपन में एकता में 

जैसे मानो चाहत और चाहत के हर उस ख्याल में 

प्रेम में प्रीत में प्रीत की रीत में

बस अविरत प्रेम में, प्रेम के सागर में

प्रेम की कल्पना में सच्चाई में 

उसकी हर साहजिकता में

प्रेम की परिभाषा में निस्वार्थ में 

शक्ति में भक्ति में भक्ति की शक्ति में 

अपने ईश्वर के अहंकार में 

अपनेपन की श्रद्धा में उस भाव में  

अभाव में स्वभाव में 

कारण शरीर से 

आत्मा और सुक्ष्म शरीर में 

क्रांति में भ्रांति में 

उसके बाद हर उस शांति में 

चिदानंद में सच्चिदानंद में 

एक साथ है वो बहुत खास है 

दिल के पास और आसपास है

बा ही बा 

कण कण में क्षण क्षण में 

दिल से दिमाग में और उसके पर में 

आंसू के मोह से 

मोह माया से कोसों दूर में 

समझ से इस दुनिया से पर में 

अब स्पंदन में वंदन में

।। प्यारे दुलारे न्यारे कृष्णा बा ।।

Sunday, 30 March 2025

કવિ શું કરે છે ?

કવિ 

રમે છે 

ભમે છે 

નમે છે

ગમતીલા ને ગમે છે

ભટકે છે 

અટકે છે 

છટકે છે 

લટકે છે

ખટકે છે, 

કટકે કટકે લડે છે

પડે છે,

ઝઝૂમે છે 

ફળે છે

સળવળે છે 

ટળવળે છે 

થનગને છે

મેહ કેરી મઘમઘે છે 

ચરે છે 

ફરે છે 

પરે છે 

ડરે છે 

જરે છે 

વિચરે છે,

વિચારે છે,

વિચારો ના વમળ માં વિચરે છે,

હળે છે

મળે છે

કળે છે

ભળે છે 

છળે છે 

વળે છે

રળે છે 

પળે પળ બળે છે, ઢળે છે,

ઊતરે છે

ચડે છે

નડે છે 

રડે છે 

જડે છે 

ઝૂડે છે, ગુમે છે,

આમ તેમ આંટાફેરા કરે છે

ભાગે છે

જાગે છે

તાગે છે 

વાગે છે 

જાણે (છે)

લાગે છે,

કવિ કવિતા લખવા સિવાય બધું કરે છે,

નો કરવાનું 

સઘળું કરે છે 

કરવાનું 

બધું છોડે છે 

ખબર નઈ

કવિ શું કરે છે?

ચકાસો અલ્યા ઓય 

કવિ શું નો કહી ને પણ, કહે છે 

Monday, 24 March 2025

रहा ना जाय!!

आधी  रात

पूरी - अधूरी  बात ,

उफ़ ये चाय 

किस की क्या राय  ?

आधा हिस्सा 

अघरा किस्सा ,

आधी - मधुरी मुलाकात 

लगा रहे वाट,

आधी तकरार

आधी हार 

पूरा अधूरा स्वीकार,

उफ़ ये चाय 

आये हाय ,

आधा इनकार 

थोड़ा थोड़ा प्यार,

अधूरा इकरार,

जुड़ रहे है तार

सुनो ओ यार, 

 ये वार 

लगा है नदियों पार ,

उफ़ ये चाय 

उसपे छाये,

आधा चाँद 

पूरा सवेरा, 

सुनहरी किरणे 

रूह कांपती लहरे,

कर्कश नग़मे 

अधूरे मधुरे तराने, 

उफ़ ये चाय 

है गहरी खाई,

थोड़ी शैतानी 

नादानी, खींचातानी,

बहूत छेड़खानी ,

आधी सुनी 

अधूरी अनसुनी,

 देखि, अनदेखी 

थोड़ी अनदेखी भी देखि,

उफ़ ये चाय 

रहा ना जाय,

थोड़े  हिस्से

अधूरे किस्से,

आधी कहानी 

किसी और दिन सुनानी,

उफ्फ़ ये चाय!!

हेलो हाय बाये बाये 

Friday, 21 March 2025

मीठी सी, सुल्जी सी उल्जन !

 अभी सुल्जन तो कभी उल्जन,

उल्जन पे क्यों उल्जन, 

ठहरो,

 उल्जन ही है सुल्जन!!

हलकी सी है खनखन,

न चाहते हुऐ क्यों हो रहा चंचल मन,

झणझणीत हो रहा रोम रोम,

खिला है फूल नहीं, पूरा वन,

तभी तो है उल्जन,

जगे जगे मनचले सजन,

दाँत दिखा रहे है लगाके मंजन,

ध्यान बेध्यान सा है मन,

क्या लगता है इन बातो पे दे वजन ?

हो रही है और उल्जन 

है कोई प्रतिउत्तर, नगर जन ?