Friday, 21 March 2025

मीठी सी, सुल्जी सी उल्जन !

 अभी सुल्जन तो कभी उल्जन,

उल्जन पे क्यों उल्जन, 

ठहरो,

 उल्जन ही है सुल्जन!!

हलकी सी है खनखन,

न चाहते हुऐ क्यों हो रहा चंचल मन,

झणझणीत हो रहा रोम रोम,

खिला है फूल नहीं, पूरा वन,

तभी तो है उल्जन,

जगे जगे मनचले सजन,

दाँत दिखा रहे है लगाके मंजन,

ध्यान बेध्यान सा है मन,

क्या लगता है इन बातो पे दे वजन ?

हो रही है और उल्जन 

है कोई प्रतिउत्तर, नगर जन ?