मौसम तो युही बदनाम है
करतूत तो हमारे किये धराये है,
लडके बेइमान है और, लडकियाँ बदनाम है
रुके तो सही।
कही निव मे तो ही नहीं खोट है ?
उच निच का भेद शुरु से हि पुर ज़ोर है
घरो से, बडो में से ही कोई चोर है....
लडका घर का चिराग है
लद्की पेदा हुइ वो पिछेले जन्म के पाप है
यही से शुरु होता रामखाण है
जातिभेद तो नहि कारण है?!?
राजा बेटा पेदा होते ही त्यौहार है
बेटिया होना परिवार पे मार है
बेटियों को बनाया कुदरत ने, कोई तो इसका कारन है....
हमारी सोच का आयना ही ये समाज है
यही चेतावनी की घंटी है
आज। आसिफा कल निर्भया परसो। ...... ?
कही गली, नाली, कमरे, कोठे, खेत, भर बाजार, और अब मंदिर में
हर रोज़ पढ़ते हम कितने सारे तो किस्से है। ......
जब तक नर नारी की संख्या असमान है
तब तक खबर वही, नाम बदल छपनी है
ज्ञान की बातो से पहले जीवन-ज्ञान का समय है
शिक्षण घर से माँ-बाप, बड़े-छोटे से ज़रूरी है
लाड प्यार के साथ इज़्ज़त, समानता ही इंसानियत है
काम, पैसे तो ढेरो है वही फुर्सत के समय की कमी है
बच्चे (लड़के) तो रीत किताब है, शरू से ही शरू करना जिम्मेद्दारी हमारी है
विरोध से ज़्यादा निरोध की ज़रूरत है
पूछे तो। .. ज़बरदस्ती करना तो मेरी फिदरत है ?
अब सोच में बदलाव ही ज़रूरी है
नेता, शिक्षक, सरकार पहले खुदी को बुलंदी देनी है
सिर्फ मीडिया, सोशल मीडिया के पोस्ट की बजाये खुद के घर के ,
चिराग और रौशनी को सामान पसंद करने की बारी है
कल का निर्माण आज से और खुद के से घर से रचना है
बच्चे को जन्म देने से पहले सामान सोच को करना है
तभी सारी गुड़िया रानी है और नहीं कोई अनहोनी होनी है
लिखना मेरी कोषिश है, समजे तो किसीके के लिए वो बक्षीश है
many cases of rape, some are silent, buried, investigate, not... however, one thing unchanged, it is on going..,
करतूत तो हमारे किये धराये है,
लडके बेइमान है और, लडकियाँ बदनाम है
रुके तो सही।
कही निव मे तो ही नहीं खोट है ?
उच निच का भेद शुरु से हि पुर ज़ोर है
घरो से, बडो में से ही कोई चोर है....
लडका घर का चिराग है
लद्की पेदा हुइ वो पिछेले जन्म के पाप है
यही से शुरु होता रामखाण है
जातिभेद तो नहि कारण है?!?
राजा बेटा पेदा होते ही त्यौहार है
बेटिया होना परिवार पे मार है
बेटियों को बनाया कुदरत ने, कोई तो इसका कारन है....
हमारी सोच का आयना ही ये समाज है
यही चेतावनी की घंटी है
आज। आसिफा कल निर्भया परसो। ...... ?
कही गली, नाली, कमरे, कोठे, खेत, भर बाजार, और अब मंदिर में
हर रोज़ पढ़ते हम कितने सारे तो किस्से है। ......
जब तक नर नारी की संख्या असमान है
तब तक खबर वही, नाम बदल छपनी है
ज्ञान की बातो से पहले जीवन-ज्ञान का समय है
शिक्षण घर से माँ-बाप, बड़े-छोटे से ज़रूरी है
लाड प्यार के साथ इज़्ज़त, समानता ही इंसानियत है
काम, पैसे तो ढेरो है वही फुर्सत के समय की कमी है
बच्चे (लड़के) तो रीत किताब है, शरू से ही शरू करना जिम्मेद्दारी हमारी है
विरोध से ज़्यादा निरोध की ज़रूरत है
पूछे तो। .. ज़बरदस्ती करना तो मेरी फिदरत है ?
अब सोच में बदलाव ही ज़रूरी है
नेता, शिक्षक, सरकार पहले खुदी को बुलंदी देनी है
सिर्फ मीडिया, सोशल मीडिया के पोस्ट की बजाये खुद के घर के ,
चिराग और रौशनी को सामान पसंद करने की बारी है
कल का निर्माण आज से और खुद के से घर से रचना है
बच्चे को जन्म देने से पहले सामान सोच को करना है
तभी सारी गुड़िया रानी है और नहीं कोई अनहोनी होनी है
लिखना मेरी कोषिश है, समजे तो किसीके के लिए वो बक्षीश है
many cases of rape, some are silent, buried, investigate, not... however, one thing unchanged, it is on going..,
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