Friday, 21 March 2025

मीठी सी, सुल्जी सी उल्जन !

 अभी सुल्जन तो कभी उल्जन,

उल्जन पे क्यों उल्जन, 

ठहरो,

 उल्जन ही है सुल्जन!!

हलकी सी है खनखन,

न चाहते हुऐ क्यों हो रहा चंचल मन,

झणझणीत हो रहा रोम रोम,

खिला है फूल नहीं, पूरा वन,

तभी तो है उल्जन,

जगे जगे मनचले सजन,

दाँत दिखा रहे है लगाके मंजन,

ध्यान बेध्यान सा है मन,

क्या लगता है इन बातो पे दे वजन ?

हो रही है और उल्जन 

है कोई प्रतिउत्तर, नगर जन ? 



Saturday, 25 March 2023

बेचैनी

 हमने भी किसी को रुलाया होगा

कभी किसी का.. 

नहीं बाहोतो का दिल दुखाया होगा! 

अपनो और अनजानो को हिस्सा बनाया होगा, 

सफेद सच कहे तो जाने मे 

नहीं तो अनजाने मे ही सही, 

कभी किसी को बुरा कहा होगा, 

भला... छोड़े भलाई का तो ज़माना ही नहीं है 

ऐसे मान के दिल को बेहलाया होगा, 

भला तो बहोत कम ही किसी को कहा होगा! 

कितनो को सताया होगा, 

हराया होगा, 

सचे को जूठा जताया होगा 

अपने जुठ मे सचे को भागीदार बनवाया होगा 

पूरे आतमविश्वास से, 

आखों मे आखें डाल के 

कलाकारी दिखाके, 

पापो से नहाया होगा, 

ठगा होगा, हगा होगा, 

कितना सरल कर दिया है हमने 

इन कठोर कामो को 

और सीधे सरल को कठोर 

अपनी सरलता, बेहकावे, अहम के, 

मरहम के लिए

कितनो को फसाया होगा 

जीत के जश्न मनाया होगा 

उसूलो बेचा होगा 

ऊपर उठने के लिए या ऊपर दिखाने के लिए 

खाई मे गिराया होगा 

ऊपर फिर हाथ की जगेह हाथोडा दिया होगा,

लटकाया होगा, अटकाया होगा, 

बस यूही विक्रूत आनंद लिया होगा, 

सोच के भी आत्मा काँप जाए 

ये सब भी किया होगा, 

किसी को बेचा होगा 

गिरवी रखने पे मजबूर किया होगा 

कभी लगता है मानवी तो छोड़े 

पिसाच से भी ऊपरी रहे होंगे, 

क्यू? 

किस लिए? 

क्या मिला ?

दो पल की हँसी, या बेचैनी 

Tuesday, 21 March 2023

कली


 कली खिली है

कही आस जगी है, 

फाग आयी है,

रंग लायी है,

कली खिली है, 

बहार आयी है..