Sunday 29 January 2023

तिरस्कार - धृणा

तिरस्कार लगे फटकार 

मानवी मानवी पर बरसाए बार बार 

लगातार अनरधार अपरंपार 

सोचते रह जाते है किस घोड़ी पे है सवार,

कर देते है ये वार 

लिए - पहनाये काटों का हार 

शायद बहार आ रहा है,

अंदर का बवाल 

दिल में कहीं रहा गया होगा सवाल,

जिसका ढूँढ रहे है वो जवाब!

लेकिन 

तरीका है बेकार,

मौका तो दे उनको भी मेरे यार,

क्यों ना करे थोड़ा सा,

सिर्फ १०० ग्राम सा... 

सोच विचार!

नज़रये की है बात,

रख ले थोड़ा सा ऐतबार,

कदाचित नज़रिए पे आ जाये प्यार 

तिरस्कार है वार

सुःख, शांति, खुशियों पे मार,

ना करे ख़ुद पे अत्याचार,

छोड़े थोड़ा सा अवकाश

नज़रिए की है बात 

रखें दिल साफ़ 

तिरस्कार है अत्याचार!

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